धनबाद, झारखंड : टुंडी विधानसभा का चक्रव्यूह भेदने के लिए BJP के बड़े से बड़े सूरमा चारो खाने चित्त हो गए और अब पार्टी को एक ऐसे महारथी की तलाश है, जो रणभूमि में कमल खिलाने की हैसियत भी रखता हो और फिर विरोधियों को हर मोर्चे पर पटखनी देने में काबिल भी। यहां जोड़-तोड़ और गुणा भाग करने के लिए समय तो बहुत है, लेकिन इसका क्या फायदा ? हालिया चुनावों के परिणाम में रिजल्ट निल बटे सन्नाटा भी नजर आया है। ना हवाबाज, ना गोलीबाज और ना ही गालीबाज, बल्कि सियासी शतरंजबाज की तरह एक ऐसे कैंडिडेट की तलाश है, जो टुंडी के रण में बीजेपी के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सके।
हालांकि कई ऐसे दावेदार हैं, जिनके मन ही मन लड्डू भी फूट रहे हैं। किसी को दिन ही तारे दिख रहे हैं, तो कोई ख्यालों में यूं ही खोया है। टुंडी में कहावत और कहानियों का भी दौर चल पड़ा है। गाहे-बगाहे लोग इसकी चर्चा करना नहीं भूलते कि टुंडी में बीजेपी का खोया जनाधार कौन लौटाएगा ? सवाल उठ रहे हैं कि क्या BJP यहां इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी या फिर इस बार विधानसभा चुनाव में कोई इतिहास रचेगी ? क्योंकि टुंडी का किला फतह करना BJP के लिए इतना आसान भी नहीं है।
कोई उसे छुपा रुस्तम चाणक्य कहता है, तो किसी को उसमें टुंडी का भविष्य दिखता है। छोटी उम्र में सियासत में लोकप्रियता ऐसे मिली कि जिसकी चर्चा टुंडी, दिल्ली से लेकर नागपुर तक होती है। झारखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्री का हाथ इनकी पीठ पर है। गुटबाजी से दूर सिर्फ संगठन और पार्टी के लिए रणनीति बनाने में मशगूल। राजीव ओझा… टुंडी में ये नाम कोई नया नहीं है। कद काठी पर मत जाइये। सियासत के बड़े से बड़े सूरमा भी ये समझ चुके हैं कि अगर टुंडी में BJP को कोई जीत दिला सकता है तो वो एकमात्र यही योद्धा है, जो विरोधियों की जड़े उखाड़ने का दम रखता है। इसके पीछे का समीकरण समझना आपके लिए बेहद जरूरी और दिलचस्प भी है।
दरअसल टुंडी विधानसभा में पिछली बार BJP ने विक्रम पांडेय को टिकट दिया था, लेकिन नतीजा क्या हुआ ये बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन इस बार जातिगत समीकरण के आधार पर BJP किसी स्थानीय ब्राह्मण को टिकट देना चाहती है। इस विधानसभा में 50 से 55 हजार ब्राह्मण वोटर्स हैं, जिसमें 35 से 38 हजार कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं। कान्यकुब्ज ब्राह्मण से यदि किसी को टिकट देने पर BJP ने विचार किया तो युवा नेता राजीव ओझा की दावेदारी सबसे मजबूत है। राजीव ओझा स्थानीय होने के साथ-साथ कान्यकुब्ज ब्राह्मण भी हैं। ऐसे में इन्हें स्थानीय दूसरी जातियों का भी समर्थन मिलने की उम्मीद है।