अमर तिवारी की रिपोर्ट
झारखंड की सत्ता में काबिज होने को आतुर भाजपा इस बार विधानसभा चुनाव को लेकर काफी गंभीर है। चिंतन मंथन का मैराथन दौर चल रहा है। हर संभावित डैमेज को नियंत्रित करने के लिए अभी से कवायद शुरू है। किसी एक फार्मूले पर केंद्रित होने के बजाय उम्मीदवार के चयन में सभी पहलुओं पर गहन अध्ययन किये जा रहे हैं। हर एक सीट को महत्वपूर्ण मानकर उम्मीदवारों की जन्मकुंडली खंगाली जा रही है। झारखंड के तमाम विधानसभा क्षेत्रों से तीन तीन नामों की सूची मंगाकर उनकी मार्किंग की जा रही है।सर्वाधिक अंक पाने वाले आवेदक को ही मैदान में उतारा जाएगा।
धनबाद में एक विधानसभा निरसा में उम्मीदवार बदले जाने की संभावना प्रबल है। वैसे सिटिंग विधायक को तवज्जो दिया जाएगा।धनबाद, झरिया और सिंदरी में पार्टी किसी भी नए चेहरे पर दांव नहीं लगाएगी। हां सिंदरी में इंद्रजीत महतो की जगह उनकी पत्नी तारा देवी पर पार्टी की गहरी सहानुभूति है। राज सिन्हा और रागिनी सिंह के बदले जाने के आसार क्षीण हैं। बाघमारा के विधायक सांसद बन गए हैं। वहां से पार्टी के पास जो नाम गए हैं, उसमें शत्रुघ्न महतो, सावित्री देवी, शारदा सिंह के साथ अन्य जुड़ा हुआ है। पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि परिवारवाद को खारिज करते हुए वहां से किसी तीसरे जिताऊ उम्मीदवार पर भी पार्टी विचार कर सकती है।उसमें जनशक्ति दल के सर्वेसर्वा सूरज महतो पर भी पार्टी डोरे डाल सकती है।
सूत्र यह भी बताते हैं कि अभी हाल में जदयू में शामिल हुए जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय अपने काफी करीबी विजय झा के लिए ये सीट मांग सकते हैं। विजय झा के नाम पर भाजपा के कद्दावर नेता भी हामी भर सकते हैं। बोकारो और चंदनकियारी से क्रमशः विरंचि नारायण और अमर बाउरी फिक्स हैं। निरसा में अपर्णा की जगह मन्नू तिवारी की लॉटरी लग सकती है। मन्नू के लिए धनबाद के सांसद ढुलू महतो भी पैरवी कर सकते हैं। इससे पार्टी का ब्राह्मण कोटा भी पूरा हो जाएगा और नाराजगी भी दूर हो जाएगी।
इसी तरह धनबाद जिला के टुंडी विधानसभा में काफी माथापच्ची है। कहते हैं कि पूर्व सांसद रवींद्र पांडेय बेरमो से विधानसभा का उम्मीदवार होंगे। ऐसे में विक्रम पांडेय की दावेदारी समाप्त हो जाएगी। इसके बाद यहां भाजपा से ज्ञान रंजन सिन्हा और राम प्रसाद महतो दो बड़े नेता बचते हैं। इनके अलावा यहां से राजीव ओझा का नाम ऊपर गया है। कहते हैं कि श्री ओझा की पकड़ दिल्ली के दिग्गज नेताओं के शयनकक्ष तक है। अगर वो बाजी मार लेते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं। पिछले बार भी यहां से ब्राह्मण कोटा के उम्मीदवार विक्रम पांडेय थे। अगर रवींद्र पांडेय विधानसभा चुनाव नहीं लड़ते हैं तो फिर एकबार विक्रम पांडेय प्रत्याशी हो सकते हैं। श्री पांडेय ने पिछले चुनाव में अपने दमखम पर 48 हजार वोट भी लाया था।