अमर तिवारी की रिपोर्ट – झारखंड की हेमंत सरकार एक ओर जनकल्याण से जुड़ी योजनाओं की बारिश कर रही है। सरकारी और संविदाकर्मियों को तोहफा दे रही है। वोट बैंक को महफूज़ रखने की हर कोशिश की जा रही है। साथ ही विपक्षियों की हर चाल को रोकने के साथ गठबंधन की राह को सुगम बनाने का हाड़तोड़ प्रयास किया जा रहा है। दूसरी ओर धनबाद की वर्तमान पुलिस सेटअप सरकारी तानाबाना को तार-तार करने में भिड़ी हुई है। धनबाद के चप्पे-चप्पे कोयला चोरों का सिंडिकेट रिटेल और थोक की दुकान प्रतिष्ठान खोलकर सरकार की छवि को धूमिल कर वोटबैंक पर करारा चोट कर रहा है। निरसा, झरिया,कतरास, बलियापुर, तोपचांची, सिंदरी, बाघमारा के पग-पग पर चल रहे इस धंधे में शामिल सारे तस्कर वर्तमान सत्ता के धुर विरोधी हैं। कोयला के इस कारोबार से सरकारी दलों को चुनावी खर्च तो मिल सकता है, लेकिन इससे पार्टी के वोट को जबरदस्त चोट पहुंच रहा है। अगर यह धंधा विधानसभा चुनाव तक जारी रहा तो धनबाद के सभी विधानसभा क्षेत्रों में गठबंधन की लुटिया डूब जाएगी। सिंदरी और निरसा फतह करने का सपना तो दूर सिटिंग टुंडी और झरिया में भी नाकों चने चबाना पड़ेगा, धनबाद और बाघमारा तो वैसे ही मीलों दूर है।
कोयले की इस लूट में जो भी डुबकी लगा रहे हैं, चाहे वह पुलिस वाला हो या तस्कर उन्हें झारखंड की मिट्टी से कोई प्रेम नहीं है, उनका एक ही मकसद है, झारखंड की तबाही और बर्बादी की कीमत पर पैसे बनाना। सो वे अपने एकसूत्री मिशन में भिड़े हुए हैं। सरकार ने अगर धनबाद में कोयला तस्करी पर विराम नहीं लगाया तो सरकार अगला पांच साल विपक्ष में बैठकर आराम करने के लिए तैयार रहे।
कोयला के काले खेल के संचालक कौन हैं ये सिंह, गोप, यादव, चुनचुन, वर्मा, मिश्रा, चौबे, छब्बे, मंडल, अग्रवाल, गोयल, रिटोलिया ? सबके सब फूल खिलाने वाले हैं। कोयला के जो लेवाल हैं डोकानिया,सांवरिया, तायल,अग्रवाल यानी मालवा, मारवाड़, राजस्थान, गुजरात, यूपी, बिहार के सभी के सभी झामुमो-कांग्रेस से नफरत पालने वाले लोग हैं। ऐसे में पार्टी को चौतरफा नुकसान होना तय है और धनबाद जिला में अदना से लेकर आला पुलिस के अधिकारी वही काम कर रहे हैं। कोयले की इस आग में झारखंड की वर्तमान सत्ता का धू-धू कर जलना तय है।