तीन दिवसीय नदी उत्सव का समापन
दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में तीन दिवसीय नदी उत्सव का समापन हो गया. किरपेकर बहनों- सुश्री मधुरा और सुश्री भैरवी किरपेकर के कर्णप्रिय शास्त्रीय गायन तथा श्री विक्रांत भंडराल द्वारा हिमाचली लोकगीतों की प्रस्तुति के साथ तीन दिवसीय नदी उत्सव समाप्त हो गया.
नदियों को अकेला छोड़ दो-पीपल बाबा
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र द्वारा आयोजित पांचवें नदी उत्सव में देश भर के कई पर्यावरणविदों ने अपने विचार व्यक्त किए. सांस्कृतिक कार्यक्रम से ठीक पहले आयोजित समापन सत्र में पीपल बाबा के नाम से मशहूर स्वामी प्रेम परिवर्तन समापन सत्र में पीपल बाबा ने कहा कि जनता का दबाव सबसे बड़ा दबाव होता है. जनता सबसे बड़ा दबाव समूह है. देश सरकारों का नहीं होता, देश लोगों का होता है. सरकारें आती हैं, जाती हैं. इसलिए अपनी बात को कहिए. एक्सप्रेशन (कहने) से ही एक्शन (कार्रवाई) होता है. उनकी जिद से आपकी जिद बड़ी होनी चाहिए.उन्होंने कहा कि नदी के बिना जीवन नहीं हो सकता. नदी उत्सव जैसे आयोजन हर राज्य में होने चाहिए, विश्वविद्यालय स्तर पर होने चाहिए. पीपल बाबा ने कहा कि नदी को अकेला छोड़ दो. उसके साथ कुछ करने की कोशिश मत करो.नदी को मनुष्य साफ नहीं कर सकता. वह खुद को साफ कर लेगी. उन्होंने कहा कि नदी की टेक्नोलॉजी चार सौ करोड़ साल पुरानी है. नदी हमारी है, नदी सरकार की नहीं है, इसलिए व्यक्तिगत प्रयास बहुत महत्त्वपूर्ण है.
नदी को हमने देवी समझ लिया: प्रो.मौली कौशल
इस मौके पर प्रो. मौली कौशल ने कहा कि हमने नदी को देवी बना दिया और समझ लिया कि देवी अपना ख्याल ख़ुद रख लेगी और हमारा ख्याल भी रख लेगी. हमारे पूर्वजों ने प्रकृति को लेकर केवल देवत्व का विचार नहीं दिया था, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी दिया था. हमने पश्चिम की अच्छी बातों की जगह गलत बातें ले लीं और अपनी संस्कृति से भी चीजें अपनी सुविधानुसार लीं. उन्होंने कहा कि विचार का धरातल तैयार करना होगा. नए विचार युवा ही लेकर आएंगे. भारत का जो भी बनना है, नदियों का जो भी बनना है, पहाड़ों का जो भी बनना है, वह युवाओं से बनेगा.
नदी उत्सव में कई रोचक फिल्मों की स्क्रीनिंग
नदी उत्सव 2024 के अंतिम दिन कई रोचक फिल्मों की स्क्रीनिंग और नदी संस्कृति पर शैक्षणिक सत्रों का आयोजन हुआ. प्रदर्शित फिल्मों में ‘चिल्ड्रन ऑफ बनास’, ‘गंगा रिवर फ्रॉम द स्काइज’, आईजीएनसीए द्वारा निर्मित ‘यमुना: द रिवर ऑफ गॉड्स एंड ह्यूमन्स’, ‘जमना: द रिवर स्टोरीज’, ‘माजुली: द श्रिंकिंग आइलैंड’ और लघु फिल्म ‘दूध गंगा: वैली’ज डाइंग लाइफलाइन’ के साथ-साथ नदियों पर आधारित कई अन्य फिल्में भी शामिल थीं. इन फिल्मों में नदियों और मानव अस्तित्व के बीच के सम्बंधों को खूबसूरती से दर्शाया गया. शैक्षणिक सत्र भी उतने ही समृद्ध थे, जिसमें अतुल जैन की अध्यक्षता में ‘नदियों की कहानियां और गीत’ तथा डॉ. हेमंत ध्यानी की अध्यक्षता में ‘नदी को बहने दो’ ने नदियों से जुड़ी सांस्कृतिक और पर्यावरणीय कहानियों के बारे में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान की. इसके अलावा, बच्चों के लिए ‘नदी और मैं’ कार्यशाला, मटका पेंटिंग कार्यशाला तथा डॉ. स्वरूप भट्टाचार्य द्वारा नाव निर्माण पर प्रदर्शन व्याख्यान का आयोजन भी हुआ, जिससे आगंतुकों का अनुभव जगत समृद्ध हुआ.
नदी उत्सव में फिल्म फेस्टिवल के विजेताओं को मिला पुरस्कार
समापन सत्र के दौरान शॉर्ट फिल्म की श्रेणी में अब्दुल रशीद भट्ट की फिल्म ‘दूधगंगाः वैली’ज डाइंग लाइफलाइन’ और डॉक्यूमेंट्री श्रेणी में रतुल बरुआ की फिल्म ‘माजुलीः द श्रिंकिंग आईलैंड’ को पुरस्कृत किया गया. सत्र के अंत में, जनपद सम्पदा प्रभाग के अध्यक्ष प्रो. के. अनिल कुमार ने अतिथियों और आगंतुकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया। इस सत्र का संचालन नदी उत्सव के संयोजक श्री अभय मिश्रा ने किया.