धनबाद में कांग्रेस का इंजन, बॉगी, चक्का सब बेपटरी हो चला है।
मारग सोई जाकहं जो भावा,नेता सोई जो गाल बजावा,
मिथ्यारत दंभरत जोई ताकहं नेता कहे सबकोई।
सोई सयाना जो परधन हारी, जो कर दंभ सो बड़ आचारी।
जो कह झूठ मसखरी जाना,कांग्रेस में सोई गुणवंत बखाना।।
कोई जिलाध्यक्ष को धकियाकर कुर्सी पाने को आतुर है तो कोई धनबाद से पार्टी का टिकट पाने को व्यग्र हो रहा है। फेसबुक पर खूब नेतागिरी हो रही है। बंजर जमीन पर खाद पानी डालने के बजाय अपनी डफली अपना राग की राह पर चलकर मंजिल मुकम्मल करने की मंशा पाले बैठे हैं कांग्रेस के स्वयंभू नेतागण। ऐसे लोग कांग्रेस का भला करने के बजाय भाला करने पर तुले हैं। जिलाध्यक्ष की दौड़ में वरिष्ठ कांग्रेस नेता विजय सिंह, रविंद्र वर्मा, मदन महतो, शमशेर आलम सरीखे लोग हैं। भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस में भी ओबीसी कार्ड चल रहा है, लिहाजा एकबार के विधायक केशव महतो कमलेश को प्रदेश के रथ का बागडोर थमा दिया गया। झारखंड में राजनीतिक तौर पर सर्वाधिक जागरूक और महत्त्वाकांक्षी प्रजाति कुर्मी है, झारखंड की राजनीति में कुर्मी एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है,सबकी नजर उसपर है, सो केशव जी को सूबे का मुखिया बना दिया गया। रविंद्र वर्मा कोइरी जाति के हैं और मदन महतो कुर्मी हैं। इन्हीं में से किसी एक को जिलाध्यक्ष की कुर्सी मिल सकती है और तब किसी सवर्ण को विधानसभा का टिकट दिया जा सकता है।
टिकट की दौड़ में सिक्कों की बात कौन करे, अठन्नी, चवन्नी,अधेली भी हवा बनाने में पीछे नहीं हैं। धनबाद में कांग्रेस की राजनीति में फिलहाल पहला नाम विजय सिंह का आता है। वे श्यामसुंदर सिंह धीरज, तारिक अनवर के समकालीन नेता हैं, जो कहां से कहां पहुंच गए। पार्टी ने इन्हें वर्ष 96 में विपरीत हालात में लोकसभा का टिकट दिया, उसके बाद प्रदीप बालमुचू, सुशीला केरकेट्टा, सुखदेव भगत के कार्यकाल में पार्टी ने हमेशा इनकी उपेक्षा ही की। छल प्रपंच से कोसों दूर विजय सिंह धीरे-धीरे हासिए पर धकेले जाते रहे। यही वजह है कि इनके पीछे पीछे चलने वाले राजेश ठाकुर जैसे लोग भी संगठन में आगे निकल गए। दूसरा नाम अजय दुबे का है। जमीन पर सक्रियता इनकी बेहद कम है। धनबाद से अधिक दिल्ली की राजनीति करते हैं।
अब हम मयूर जी की बात करते हैं। उन्हें धनबाद की धरती में खेलने कूदने का मैदान अभिजीत राज ने दिखाया था। लेकिन आज वे अतीत को भुलाकर संभव में संभावना तलाश रहे हैं। वैसे वे अभी रंगहीन हैं, कांग्रेस के झंडा बैनर से दूरी बनाए हुए हैं। दूसरे नेता अशोक सिंह हैं। इन्होंने जमीन में उर्वरा तो डाली है, लेकिन बीज सारे हाइब्रिड हैं। साथ चलने वालों में एक यादव जी हैं। वे ताउम्र माला लेकर घूमते रहे। माला पहनने के चक्कर में कभी स्थापित नेता नहीं बन सके। मतलब पार्टी में कोई खास वजूद नहीं है। एक है वाकई पप्पू,सूरज अस्त पप्पू पस्त। तीसरे हैं योगी आदित्यनाथ। ग्लैमर और फ्लेवर के आसिक को योगी से भोगी बनते सेकंड भर भी देर नहीं लगती। अशोक जी के साथ चौथे हैं बाल गोपाल। वो खूब जयकारे लगाता है,लेकिन उसके जयकारे की गूंज ढोल नगाड़े, तुरही और श्रृंग के सामने फीकी पड़ जाती है। फ्रंट लाइन पर सीट कब्जा करने में पिछड़ जाते हैं। एक और नाम है शिक्षा जैसे पेशा से उदर भरने का कर्म सिखाने वाले अभियंता रवि चौधरी का। ये चुनाव पर्व के आते ही सब जगह हाथ पांव मारना शुरू कर देते हैं। पिछली दफा अपने बेटे को साथ लेकर पूर्व सांसद पी एन सिंह के दरबार में गए थे और पार्टी में पैसों की पोटली देकर बेटे को भाजपा की आजीवन सदस्यता भी दिलवाई थी। कहते हैं रवि चौधरी बिहार से निर्दलीय चुनाव भी लड़ चुके हैं। राजद से भी टिकट का प्रयास किया था। अब धनबाद में कांग्रेस का समुंद्र हिडने में लगे हैं। उनका हनुमान पार्टी से निष्कासित राम प्रवेश शर्मा हैं। कहते हैं जहां-जहां पड़े पांव राम प्रवेश के तंह-तंह बंटाधार।
धनबाद में कांग्रेस संगठन की धार कुंद हो गई है। पूरा कुनबा, ब्राह्मण, भूमिहार, ठाकुर, ओबीसी, ओवैसी और मुसलमान में बंटा हुआ है। झरिया और बाघमारा में टिकट लगभग तय है। धनबाद विधानसभा में एक अनार दस बीमार हैं। ऊपर से लंगड़ी मार राजनीति चल रही है। हालांकि सक्रिय राजनीति में अशोक सिंह अग्रणी हैं। इनके अंदर हुनर और जौहर दोनों है। अगर इन्हें राजनीति में छलांग लगानी है तो इन्हें अपने राम से आशीर्वाद लेना होगा। ये सुयोग है कि झरिया से राजपूत, बाघमारा से ओबीसी उम्मीदवार होंगे तो धनबाद हरहाल में ऋषि या ब्रह्मर्षि के खाते में जाएगा।