कहते हैं इतिहास यूं ही नहीं बन जाता है। इतिहास बनाने में अरसा लम्हा बीत जाता है, पीढ़ियां खत्म हो जाती हैं, तब जाकर सुनहरे अक्षरों में इतिहास के पन्नों में नाम दर्ज होता है। क्या आपने कभी सोचा कि हमारे पूर्वजों ने जो बलिदान, संघर्ष और कुर्बानी दी है, उससे क्या वाकिफ हैं। सवाल इतिहास को संजोकर रखने का है ? और उन इतिहास के पन्नों को खंगालने का, जिसके बारे में आज की पीढ़ियां वाकिफ नहीं हैं।
‘ओझाडीह का इतिहास’
झारखंड के धनबाद जिले के रहने वाले युवा लेखक नीलेश ओझा की किताब ‘ओझाडीह का इतिहास’ आज खूब चर्चा में है। पूर्वजों के इतिहास पर शोध कर नीलेश ओझा ने इस किताब ने उन सभी घटनाक्रम का जिक्र किया है जो ओझाडीह के बारे में बखूबी से पेश करता है। आखिर क्यों खास है ओझाडीह का इतिहास और आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए और इस किताब में आखिर क्या है तो वो भी आपको बताते हैं ?
ओझाडीह का उद्भव कैसे हुआ ?
युवा लेखक नीलेश ओझा के मुताबिक-”आर्ष परिषद् कनकुब्ज ब्राह्मण समाज कतरास के द्वारा सम्मानित आने वाली अन्य छः किताबें काला लोकतंत्र, ये जीवन है, पुरानी यादें, ब्रह्मांड का रहस्य, कीमती जीवन सहित अपना आर्ष परिषद कतरास समाज है ! सहित खोरठा में कहानी संग्रह पर भी काम चल रहा हैं। मैंने इस पुस्तक में टुंडी राजपरिवार का संपूर्ण इतिहास शोध करके शामिल किया हैं। ओझाडीह का उद्भव कैसे हुआ, किन परिस्थितियों में हुआ सहित अन्य रोचक जानकारियां जिससे लोग शायद आज भी अनभिज्ञ हैं। झारखंड राज्य अन्तर्गत धनबाद ज़िला के टुंडी प्रखंड के परिपेक्ष में ओझाडीह गांव का इतिहास इस पुस्तक की खासियत है। पुस्तक में ओझाडीह का संपूर्ण वंशावली भी सम्मिलित किया गया है। मेरी यह पुस्तक तथ्यात्मक रूप से जानकारी एकत्रित करके तथा गजेटियर, खेवट, साक्षात्कार सहित अन्य दस्तावेज़ पर आधारित हैं। अमेजन और फ्लिप्कार्ट पे उपलब्ध है”।
लेखक का परिचय
नीलेश ओझा का कहना है- ”गांव के इतिहास पर शोध 11 -12 साल पहले से करता आ रहा हूं। इसके पश्चात पुस्तक लिखा। ताकि हम अपने देवतुल्य पूर्वजों के इतिहास को संजोए रखें और आने वाली पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखें। यह पुस्तक संपूर्ण रूप से हमारे पूजनीय देवतुल्य पूर्वजों को समर्पित करता हूं। यह पुस्तक पूर्वजों का चरणामृत का कार्य करेगा जिसे पाकर हम कृतार्थ होंगे।साथ ही मेरी माता जी स्वर्गीय रूबी देवी और पिता जी शक्ति प्रसाद ओझा को पुस्तक लेखनी का श्रेय दूंगा। इन्हीं के आशीर्वाद से मैं यह पुस्तक लिख सका”।
बलिदान की सच्ची घटना
आज हम ऐसी सभ्यता में जी रहे हैं जहां व्यक्ति स्वार्थी हो गया है। अगर किसी के घर में कोई समस्या उत्पन्न हो जाती है तो अपनी समस्या नहीं रहने पर ज्यादातर अनदेखा कर देते। इसलिए मैं आप लोगों को एक सच्ची घटना सुनाना चाहता हूं जो शायद हम सबों को प्रेरित करें। यह कहानी सन उन्नीस सौ सत्तर के दशक की है बरसात का मौसम शुरू ही हुआ था। ओझाडीह गांव के लोग बहुत खुश थे। क्योंकि पिछले कुछ सालों से बारिश अच्छी नहीं हुई थी, बारिश यह सोच कर आई थी कि अपने परिश्रम करने वाले श्रमिकों के परिवार को भूखा नहीं रहने देंगे।
शिव मंदिर का निर्माण
शिव मंदिर का निर्माण बिहारीलाल ओझा के बेटे भोलानाथ ओझा ने किया। उनका कोई संतान नहीं हुआ, उन्होंने अपना पूरा जीवन शिव जी के लिए ही निछावर कर दिया। भगवन भोलेशंकर का शिवलिंग बनारस से ले कर आए। शिव मंदिर का निर्माण करवाया, फिर शिव मंदिर का विधिवत पूजन करके स्थापना किए। शिव मंदिर में लोगों की शादियां सम्पन्न होती हैं।
बूढ़ा पीपल वृक्ष का इतिहास
यह वृक्ष शिव मंदिर के पीछे वाले स्थान में मौजूद है। बूढ़ा पीपल वृक्ष भी उतना ही पुराना है जितना कि हमारे गांव का इतिहास। यह वृक्ष संभवत आसाराम ओझा जी के पुत्र के समय में लगाया गया था। ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष में शनिवार को जल देना चाहिए, शनि देव सभी के संकट हर लेते हैं। वर्तमान में इस पेड़ के बहुत सारे डालियां टूट गई है, जिससे यह वृक्ष अब उतना घना नहीं रहा। ‘ओझाडीह का इतिहास’ किताब में इन्हीं सब बातों की चर्चा है। ऐसे में आपको भी ये किताब जरूर पढ़नी चाहिए। अमेजन और फ्लिप्कार्ट पर ये किताब उपलब्ध है। युवा लेखक नीलेश ओझा का हौसला बढ़ाइये और ‘ओझाडीह का इतिहास’ जरूर पढ़ें।