धनबाद, झारखंड- टुंडी, झारखंड का वो विधानसभा क्षेत्र, जहां सियासत कभी कांग्रेस तो कभी जेएमएम के इर्द-गिर्द ही घूमती रही, हालांकि वो बीते दौर की बात है, जब बीजेपी ने इस सीट पर परचम लहराया था और वो 1985 की बात है… जब बीजेपी की टिकट पर सत्य नारायण दुदानी ने कांग्रेस प्रत्याशी उदय कुमार सिंह को दिलचस्प मुकाबले में मात दी थी, जीत का अंतर बेशक कम था, लेकिन उसके बाद से टुंडी विधानसभा में बीजेपी को कभी जीत नसीब नहीं हुई। हालांकि अब बदलते दौर की सियासत में समीकरण में अब बदल चुके हैं, जिस पर ना सिर्फ जनता को भरोसा है बल्कि बीजेपी के आला नेताओं की नजर भी उन पर है।
राजीव ओझा की इतनी चर्चा क्यों ?
राजीव ओझा किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उम्र का तकाजा मत देखिए, बल्कि सियासत के तर्जुबा के बल ही BJP जैसे बड़े संगठन में उनकी पैठ है। पकड़ ऐसी कि अच्छे-अच्छे राजनेता की शतरंज की चाल भी फीकी पड़ जाए। यहां तक कि कई बड़े दिग्गज नेता भी राजनीति की डगर में कदम-कदम पर राजीव कुमार ओझा से सलाह लेना नहीं भूलते। सवाल है कि आखिर राजीव कुमार ओझा की इतनी चर्चा क्यों हो रही है ? तो ये सवाल भी लाजिमी है।
मजबूत दावेदार के तौर पर उभरे
दरअसल, टुंडी विधानसभा में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर जिन-जिन राजनेताओं ने अपनी दावेदारी पेश की, उनमें राजीव कुमार ओझा का नाम भी शामिल है और ये कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है क्योंकि राजीव कुमार ओझा की दावेदारी पहले से ही मजबूत मानी जा रही थी और इसके पीछे है बीजेपी जैसे संगठन में उनकी मजबूत पकड़। पत्रकारिता के क्षेत्र से करियर की शुरुआत करने वाले राजीव कुमार ओझा के पास ना सिर्फ अनुभव है, बल्कि जनता की नब्ज टटोलने का तर्जुबा भी है। झारखंड में उग्रवाद जब चरम पर था, उस वक्त राजीव कुमार ओझा जैसे पत्रकारों ने ख़बरों का सटीक विश्लेषण अपनी जान पर खेलकर लोगों तक पहुंचाया। आदिवासी क्षेत्रों में भी उन्होंने काफी काम किये हैं।
राजीव के पक्ष में क्या है माहौल ?
अब सवाल है कि आखिर टुंडी जैसे विधानसभा क्षेत्र में कमल खिलाना बीजेपी के लिए कितनी बड़ी चुनौती है ? इसका सीधा सा जवाब है-चुनौती तो है, लेकिन अगर पार्टी टिकट बंटवारे को लेकर अपनी सूझबूझ और रणनीतिकार से सही फैसला लेती है, तो टुंडी में भी मुमकिन है कि बीजेपी इतिहास रच सकती है। अब इसका जवाब ऐसे भी समझ लीजिए, टुंडी विधानसभा क्षेत्र में करीब 50 से 55 हजार ब्राह्मण वोटर्स हैं, (जो 1932 खतियान में आते हैं) और आज तक इस विधानसभा क्षेत्र में स्थानीय ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट ही नहीं मिला है। 36 ऐसे गांव हैं, जहां कान्यकुब्ज ब्राह्मण की संख्या हैं और 25 से 30 हजार के करीब कान्यकुब्ज ब्राह्मण वोटर्स हैं और राजीव कुमार ओझा भी ब्राह्मण समाज से ही आते हैं। साथ ही साथ मुस्लिम, यादव, मायरा मोदक, मंडल, कुम्हार, धोबी, रजवार, दास, रविदास, मोहली और आदिवासी समाज में भी राजीव कुमार ओझा की अच्छी पकड़ है। ऐसे में राजीव कुमार ओझा चारों पैमाने पर बिल्कुल फिट बैठते हैं।
दिल्ली के चाणक्य खिलाएंगे कमल ?
ना सिर्फ जातीय समीकरण बल्कि संगठन और क्षेत्र में मजबूत पकड़ उन्हें सबसे मजबूत दावेदार के तौर पर भी पेश करती है। यही नहीं, दिल्ली के इस चाणक्य पर पार्टी के आलानेताओं में भी एक उम्मीद जगी है कि टुंडी में इस बार कमल खिलना तय है। साथ ही साथ आपको बता दें कि राजीव कुमार ओझा की बीजेपी में बड़े नेताओं से अच्छा तालमेल है। साथ ही पारिवारिक संबंध भी हैं। इस संबंध के आधार पर इनकी टिकट कन्फर्म मानी जा सकती है और पिछले दिनों बीजेपी नेताओं की रायशुमारी में भी राजीव कुमार ओझा का नाम उभरकर सामने आया है। कुल मिलाकर बीजेपी के इस युवा नेता पर बड़ा दारोमदार है, देखना होगा कि राजीव कुमार ओझा तमाम चुनौतियों से कैसे पार पाते हैं और कैसे टुंडी विधानसभा क्षेत्र में कमल खिलाने में वो कामयाब होते हैं ?