पैरालंपिक खेलों में पैरा एथलीट धर्मबीर ने 2024 पैरालंपिक में पुरुष क्लब थ्रो एफ 51 के फाइनल में 34.92 मीटर के थ्रो के साथ एक नया एशियाई रिकॉर्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता। धर्मबीर ने एफ 51 श्रेणी में प्रतिस्पर्धा की, जिसमें अंग विकृति, पैर की लंबाई में अंतर, कमजोर मांसपेशियों और कम गतिशीलता वाले एथलीट शामिल थे। भारत ने पहली बार पैरालंपिक खेलों की क्लब थ्रो स्पर्धा में पदक जीता है। उनके साथ-साथ खिलाड़ी प्रणव सूरमा ने भी देश के लिये रजत पदक जीत कर देश को गौरवान्वित किया है
18 जनवरी 1989 को हरियाणा के सोनीपत में जन्मे धर्मबीर के साथ एक दुर्घटना हुई जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। अपने गाँव में एक नहर में गोता लगाते समय, वह पानी की गहराई का गलत अनुमान लगा बैठे और नीचे पत्थरों से टकरा गए। इससे उनके कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। जीवन बदलने वाली यह घटना भी उन्हें नए अवसरों की तलाश करने से नहीं रोक पाई।
वर्ष 2014 में, धर्मबीर ने पैरा-स्पोर्ट्स में हाथ आजमाना शुरू किया और इससे उनके जीवन में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। उन्होंने पैरा-एथलीट अमित कुमार सरोहा के मार्गदर्शन में क्लब थ्रो का प्रशिक्षण शुरू किया। कड़ी मेहनत और समर्पण के बल पर धर्मबीर ने इस खेल में अपनी पहचान कायम की। उन्होंने दो साल से भी कम अवधि में वर्ष 2016 में रियो पैरालिंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया। तब से धर्मबीर शानदार प्रदर्शन करते अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के लिए कई जीत चुके हैं। धर्मबीर को खेलों में उत्कृष्ट योगदान के लिए साल 2022 में हरियाणा सरकार की ओर से सर्वोच्च खेल सम्मान ‘भीम पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उनकी यह प्रेरणादायक यात्रा दबाव झेलने की क्षमता, दृढ़ संकल्प और जीवन को बदलने में पैरा-खेलों की शक्ति का एक प्रमाण है।