पलामू व्याघ्र परियोजना के बारेसाढ़ वनों में सेमल के पेड़ पर 10 वर्षों से आ रहा दुर्लभ सारस पक्षी, पलामू टाइगर रिजर्व में पर्यटकों के लिए बना आकर्षण का केंद्र

पलामू व्याघ्र परियोजना के बारेसाढ़ वनों में सेमल के पेड़ पर 10 वर्षों से आ रहा दुर्लभ सारस पक्षी, पलामू टाइगर रिजर्व में पर्यटकों के लिए बना आकर्षण का केंद्र

आलोक कुमार सिंह की रिपोर्ट 

लातेहार, झारखंड : झारखंड के लातेहार जिले में स्थित पलामू टाइगर रिजर्व के बारेसांढ़ गांव के पास इन दिनों एक अनोखा और दुर्लभ दृश्य देखने को मिलता है। बारेसाढ़ गांव के समीप झुमरी टोला में खड़े एक विशाल सेमल के पेड़ पर पिछले 10 वर्षों से एक विलुप्तप्राय प्रजाति का सारस पक्षी, जिसे एशियाई ऊनी गर्दन वाला सारस (Asian Woolly-necked Stork) के नाम से जाना जाता है, प्रजनन के लिए आता है। यह सारस जुलाई से सितंबर तक यहां प्रवास करता है और इसी दौरान यहां अपने अंडे देकर बच्चों के साथ सितंबर के अंत तक उड़ जाता है। गांव के लोगों के लिए यह सारस किसी रहस्य से कम नहीं है।

ग्रामीणों का कहना है कि यह पक्षी हर साल उसी बारेसाढ़ के झुमरी टोला वाले पेड़ पर लौटता है और इसका स्थानीय नाम भले ही उन्हें न पता हो, लेकिन इस पक्षी का आगमन अब उनकी प्रत्येक वर्ष दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इस दुर्लभ सारस पक्षी की पहचान उसकी काली पीठ, गहरे हरे और बैंगनी रंग के पंखों और सफेद पट्टीदार गर्दन से होती है, जो इसे अन्य पक्षियों से अलग और आकर्षक बनाती है। गांव के लोग इस पक्षी को स्थानीय ग्रामीण शुभ मानते हैं और इस पक्षी को किसी भी तरह से स्थानीय ग्रामीण परेशान नहीं करते।

पलामू टाइगर रिजर्व के रेंजर तरुण कुमार सिंह बताते हैं कि इस दुर्लभ सारस पक्षी का आगमन न केवल स्थानीय निवासियों के लिए बल्कि देशभर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। इस क्षेत्र में आने वाले पर्यटक इस सारस पक्षी और अन्य दुर्लभ पक्षियों को देखने के लिए उत्सुक रहते हैं। पलामू टाइगर रिजर्व में हर साल सैकड़ों पर्यटक मारोमार, बारेसाढ़ टेनो और इन अद्वितीय प्रजातियों को देखने आते हैं। पलामू टाइगर रिजर्व दक्षिणी वन प्रमंडल मेदिनीनगर डीएफओ कुमार आशीष ने बताया कि एशियाई ऊनी गर्दन वाला सारस पक्षी एक स्थानीय पक्षी है, जो आर्द्रभूमि, दलदल, नदियों, झीलों और तालाबों में निवास करता है। इसका आहार मुख्य रूप से मेंढक, मछली, केकड़े, कीड़े और छोटे सरीसृप होते हैं। दक्षिण भारत में इसका प्रजनन काल जुलाई से सितंबर के बीच होता है, जबकि उत्तर भारत में यह दिसंबर से मार्च तक प्रजनन करता है। ये सारस जंगल के ऊंचे पेड़ों पर घोंसला बनाते हैं, जिसमें दो से पांच अंडे होते हैं।

वन विभाग इस पक्षी की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सतर्क है और इसे संरक्षित करने के लिए विशेष प्रयास कर रहा है। इस पक्षी का नियमित आगमन पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी मददगार साबित हो रहा है। इस दुर्लभ प्रजाति को देखने के लिए देशभर से पर्यटक इस क्षेत्र में आते हैं, जिससे क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिल रहा है।

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