अपने बच्चों को कैसे भेजें दिल्ली ? कोचिंग हादसे में 3 छात्रों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार ?

अपने बच्चों को कैसे भेजें दिल्ली ? कोचिंग हादसे में 3 छात्रों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार ?

राजीव कुमार ओझा की स्पेशल रिपोर्ट

दिल्ली के राजेंद्र नगर के कोचिंग सेंटर में बेसमेंट के अंदर पानी भरने से तीन छात्रों की दर्दनाक मौत हो गई। सवाल है कि आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? हादसे की जांच की बात कहकर सरकार अपनी जवाबदेही से क्या पल्ला झाड़ने में लगी है ? क्या हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों पर एक्शन होगा ? सवाल है कि बेसमेंट में कोचिंग सेंटर कैसे चल रहा था ? जहां स्टोर रूम की NOC थी वहां पर लाइब्रेरी कैसे चल रही थी ? क्या दिल्ली में लोगों की सुरक्षा भगवान भरोसे है ? बेसमेंट में आखिर बारिश का पानी कैसे भर गया ?

ऐसे कई सवाल है जिसका जवाब ना दिल्ली सरकार के पास है और ना ही एमसीडी और प्रशासन के पास। जांच के नाम पर एक कमेटी का गठन कर दिया जाएगा और फिर हादसे के कुछ दिन बाद लोग इसे भूल जाएंगे। ठीक वैसे ही जैसे पहले के हादसों को भूलते आए हैं। अगर नहीं तो क्या आपको याद है पिछले साल संस्कृति IAS की बिल्डिंग में आग लगी थी, छात्रों ने रस्सी के सहारे उतरकर जान बचाई। कुछ दिन पहले पटेल नगर में एक छात्र बिजली के खंभे के पास करंट से मर गया। न जाने ऐसे कितने ही हादसे से होते हैं, लेकिन इसे हादसा न कहकर हत्या कहे तो ज्यादा ठीक है।

अरे कोई उस मां-बाप से पूछे जो अपने कलेजे के टुकड़े के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं। एक रोटी कम खा लेंगे, लेकिन अपने बच्चों के सपनों को कभी मरने नहीं देंगे और उन तीन बच्चों का क्या कसूर था वह भी तो पढ़-लिख कर अपने मां-बाप का नाम रोशन करना चाहते थे लेकिन कभी सोचा नहीं था कि दिल्ली जैसे शहर की ओर बढ़ते उनके कदम एक दिन उन्हें मौत के मुंह में धकेल देगी।

सवाल उस सरकार और सिस्टम से है जो दिल्ली को लंदन और पेरिस बनाने का झूठा दावा करके लोगों की आंखों में सिर्फ धूल झोंकने का काम करती है। प्रदूषण के समय दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश की योजना पर काम किया जाता है। लोगों को दिखावे के लिए लंबे-चौड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन जब बारिश के दिनों में दिल्ली में थोड़ी बारिश हो जाए तो सड़कें सैलाब में तब्दील हो जाती है। गालियां और सीवर जाम हो जाते हैं। इसके बाद शुरू हो जाती है आरोप और प्रत्यारोप की राजनीति।

सरकार और प्रशासन में अगर थोड़ी भी शर्म होती तो कोचिंग सेंटर में तीन छात्रों की मौत नहीं होती। सवाल उस कोचिंग इंस्टिट्यूट पर उठ रहे हैं जो छात्रों से मोटी फीस वसूलते हैं, और कंपटीशन के इस दौर में छात्रों को रोबोट समझते हैं। आखिर कोचिंग इंस्टिट्यूट में बच्चे अब किस उम्मीद में जाएं ? जहां कदम कदम पर मौत बिछी है ? आखिर माता-पिता किस भरोसे के साथ अपने बच्चों को दिल्ली भेजें ? इन सवालों का जवाब आप खुद तय करिए क्योंकि सरकार की वही पुरानी स्क्रिप्ट फिर से तैयार है।

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