अमर तिवारी की रिपोर्ट
धनबाद में पुलिस और कोयला चोर गठजोड़ का इतिहास काफी पुराना रहा है। धनबाद में पोस्टिंग का मतलब ही है अवैध अकूत धन अर्जन, खासकर पुलिस में। हां बीच-बीच में चोंकाने वाले ईमानदार आईपीएस की पोस्टिंग भी हुई है। दरोगा, इंस्पेक्टरों ने भी यहां नाम कमाया है, जिन्हें आज भी लोग याद करते हैं। रणधीर वर्मा सरीखे दिलेर आइपीएस के लिए आज भी प्रतिवर्ष 3 जनवरी को पुष्प वर्षा होती है। कालांतर में दिनेश सिंह विष्ट, मुरारी लाल मीणा, अनिल पालटा, संजय आनंद लाटकर से लेकर एचपी जनार्दनन जैसे युवा आईपीएस आये,लेकिन वर्तमान डीजीपी अजय कुमार सिंह, शीतल उरांव, हेमंत टोप्पो, संजीव कुमार के साथ सुमन गुप्ता और अखिलेश बी वारियर भी याद किये जाते हैं।
तत्कालीन एसपी दिनेश सिंह विष्ट ने कई कोयला चोरों के बदन में “मैं कोयला चोर हूं, मुझपर थूको” की तख्ती लगाकर सड़क के चौराहों पर घुमाया था। उनके कमर में रस्सा भी बांधा गया था। एसपी अजय कुमार सिंह के खिलाफ जनप्रतिनिधि सड़क पर उतरे थे। उन्होंने कोयला लूट की छूट दी थी। मीना, पालटा और लाटकर ने भी यादगार के अच्छे लम्हें छोड़े हैं। सुमन गुप्ता के कार्यकाल में डीएसपी स्तर तक के अधिकारी ट्रांसफर करा कर भाग गए थे। वारियर के छोटे से टेन्योर में कुख्यात राधे सिंह को सीटीएस मुसाबनी जाना पड़ा था। सिपाही से लेकर डीएसपी तक वर्दी में मुस्तैद रहते थे। संजीव कुमार के समय कोठी में दलाल और तस्करों की बैठकी हो रही थी।
इसी तरह अच्छे कामकाज के लिए 80 से 90 के दशक के दरोगा कन्हैया , अमर नाथ राय, सूर्यभूषण शर्मा, आरएन कुंवर, बीके चतुर्वेदी, शैलेन्द्र कुमार,राम चन्द्र राम, भोला सिंह,जेपी राय आदि याद किये जाते हैं। फर्जीबाड़ा के लिए अब्दुल गनी मीर और रमाकांत प्रसाद का भी नाम लोग लेते हैं। वैसे ही वर्तमान एसएसपी जनार्दनन भी बहुत याद आएंगे। लेकिन सबके याद आने के पीछे कुछ अलग अलग वजहें हैं। कई अधिकारी अपनी कार्यकुशलता,कड़क मिजाज, विधि व्यवस्था और ईमानदारी के लिए याद किये जाते हैं तो कई कोयला तस्करों के साथ नेक्सस के लिए।
अब तो लोगों का ध्यान भटकाकर कोयला तस्करी को बेखोफ अंजाम देने का सिलसिला चल पड़ा है। संजीव कुमार ने बुद्धि विवेकी खुराफातियों के मार्गदर्शन में पुलिस की पाठशाला का आगाज किया,हेलमेट वितरण भी होने लगा। मोटरसाइकिल चोर गिरोह और लॉटरी के धंधेबाजों को पकड़कर खूब पीसी होने लगे। शराब,गांजा,अफीम,चरस,भांगखोर और जुआड़ी पकड़े जाने लगे थे। बीच बीच में प्रिंस खान का वीडियो धमाका,मेजर की खोपड़ी खोल बमबाजी तो पुलिस थोड़ी रेस। लेकिन इन सबके बीच मूल उद्देश्य से रत्तीभर भी पुलिस विचलित नहीं हुई।
असंख्य ट्रकें कोयला लादकर निकलती रही।हल्ला बोलने वालों की बोलती गड्डियों से बंद कर दी गयी। बीसीसीएल के बंद और चालू खदानों से कोयला और लोहा टपता रहा। अरबों का वारा न्यारा हो गया। एक अनुमान के मुताबिक 50 हजार करोड़ का कोयला लूट गया। इससे इतर सुमन गुप्ता और वारियर की हनक ऐसी थी कि मजाल नहीं था कि कोई कनीय पुलिसकर्मी सपने में भी कुछ हेराफेरी की सोच ले।
अब पारी है त्रिची एनआईटी से बीटेक कर आईपीएस बनने वाले हृदिप जनार्दनन की। जब इन्होंने योगदान दिया तो जिला के कोने कोने में संचालित अवैध डिपुओं से धड़ाधड़ कोयला जब्त होने के साथ तस्करों के विरुद्ध थानों में मुकदमें दर्ज होने लगे। सब जगह झाड़ू लग गया। थानों की पुलिस हैरान परेशान। जिला के समस्त दरोगा इंस्पेक्टर चुनाव में रिसफ्फल हो गए। नए लोग आए तो खाली थानों की कुर्सियां भरी जाने लगी। मीडिया तक ने कहा कि बगैर गड्डियों के थानेदारी मिल गयी। आज क्या स्थिति है जिला की, इसे पढ़ने महसूसने की जरूरत है। वही पुरानी संजीव स्टाइल में थानेदार रिचार्ज हो रहे हैं। कोयला की तस्करी चुनाव बाद अपनी रफ्तार में है। लेवाल नहीं मिलने के कारण चाहकर भी पारा चढ़ नहीं रहा है। ईंट भट्ठों का सीजन ऑफ हो गया,बिहार,यूपी में सन्नाटा है। बंगाल चालू नहीं हो रहा है। लिहाजा इंटरनल गेम चल रहा है। यह धनबाद है जहां ईमानदार को भी भ्रष्ट बनने के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन भ्रष्ट नहीं बनने की ठान लेने वाले को कोई कैसे भ्रष्ट बना सकता है।
एसएसपी का विजन और संदेश
देखिए वर्तमान साहब ने क्या संदेश दिया है और धनबाद में हो क्या रहा है। साहब सात साल पहले इसी जिले में ग्रामीण एसपी थे। तब इनकी स्टाइल एक अच्छे कर्तव्य परायण आईपीएस की थी।अब ऊपरी दबाव हो या कोई और महत्वाकांक्षा, साहब बदले बदले नजर आ रहे हैं।अब नीचे के अधिकारी अवैध धंधेबाजों को पकड़ तो रहे हैं पर बाद में तोलमोल के बोल के बाद शर्तिया माफीनामा के साथ निर्भय होकर शुरू भी हो जा रहे हैं। कोयला के मामले में सीआईएसएफ,माइनिंग और वन विभाग भी अब सहभागी बन गया है। निरसा, नागदा, केसरगाढा में कोयला के मामले में लॉयल है पुलिस। राष्ट्रीय संपति की लूट हो रही है। जनप्रतिनिधियों को फुर्सत नहीं है, वे आपस में टकरा रहे हैं। जनता बेचारी नंगी आंखों से सब देख रही है। बुद्धिजीवी कानाफूसी तक सीमित हैं। जिला मुख्यालय का एक डीएसपी प्रबंधन का काम देख रहा है। देखिए आगे क्या होता है।